रेणु कुमारी संवाददाता
समस्तीपुर। बोरलॉग इंस्टिट्यूट फ़ॉर साउथ एशिया (बीसा) फार्म के सभागार में गेहूं व जौ की नए प्रभेदों के बारे में किसानों के बीच जागरूकता लाने के विषय पर कार्यशाला हुई। जिसकी अध्यक्षता करते हुए आईसीएआर नई दिल्ली के निदेशक डॉ ज्ञानेंद्र सिंह ने कहा कि बिहार के किसानों कोआधुनिक तकनीक एवं नवीनतम बीज के क्षेत्र में नयापन लाने की जरूरत है। जलवायु परिवर्तन बहुत बड़ी समस्या बनकर सामने आया है।
वैज्ञानिकों को इससे निबटने में किसानों के खेत मे पहुंचकर नवीनतम बीज के प्रभेद पर अनुसंधान करने की आवश्यकता है। जिससे किसान परंपरागत बीजों को छोड़कर नए प्रभेद का चयन कर बेहतर उत्पादन ले सके। उन्होंने बीज के महत्ता पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि किसानों को भी अपने सोच में परिवर्तन लाने पर ही उत्पादन का लक्ष्य प्राप्त होगा। बढ़ते हुए तापक्रम में जरूरत के अनुसार सिंचाई के अलावे पोटास का स्प्रे करने पर नमी को बचाया जा सकता है। धान, मक्का एवं गन्ना के फसल अवशेष को खेतों में रखते हुए रोटरी कृषि यंत्र से बीजाई करने पर खेतों में जरूरत के अनुसार नमी बरकरार रहेगी। बिहार के युवाओं को बीज उत्पादन के क्षेत्र में आगे आने की आवश्यकता है।
किसानों के खेत मे सहभागिता बीज उत्पादन करने पर बेहतर उत्पादन सम्भव है। गेहूं के नए प्रभेद डीबीडब्लू 316 एवं पीबीडब्लू 826 के अलावे जौ की आरवीडब्लू 137 प्रभेद के किसानों के बीच जागरूकता लाने की जरूरत है। बीसा प्रमुख सह वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ राजकुमार जाट ने आगत अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि प्रत्येक वर्ष संस्थान के किसानों का रुझान को देखते हुए इस वर्ष भी करीब 7 हजार कुइंटल गेहूं के विभिन्न प्रभेदों का बीज बिक्री किया गया है। बिहार में 22.5 लाख हेक्टेयर में गेहूं की खेती की जाती है। संस्थान में ड्रोन से कीटनाशी दवा का छिड़काव किया जा रहा है।
बीसा के माध्यम से जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम राज्य के सभी 38 ज़िलें में चलाया जा रहा है। बीज प्रक्षेत्र ढोली के निदेशक डॉ डीके राय, आईएआरआई क्षेत्रीय केंद्र के अध्यक्ष डॉ केके सिंह, डॉ अमित कुमार आदि ने संबोधित किया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ राजेश ने की। मौके पर वैज्ञानिक सतीश कुमार सिंह सहित संस्थान के वैज्ञानिक व कर्मचारी मौजूद थे।