भारत का कचरा बाजारः पाकिस्तान के वार्षिक बजट से ज्यादा

kachara bazar

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ऋषि ​तिवारी


नई दिल्ली। प्रगति मैदान के भारत मंडपम में चल रहा ‘द्वितीय ग्लोबल कॉन्फ्रेंस ऑन प्लास्टिक रिसाइक्लिंग एंड सस्टेनेबिलिटी (जीसीपीआरएस)’ एक सम्मेलन से बढ़कर एक आंदोलन बनता जा रहा है। पहले दिन से ही इसमें आगंतुकों और हितधारकों की संख्या में भारी वृद्धि देखी गई है। छात्र, स्टार्टअप उद्यमी, नीति निर्माता और पर्यावरण विशेषज्ञ – सभी इस सवाल का जवाब जानने के लिए उत्सुक हैं- क्या प्लास्टिक कचरा भारत की अगली ‘सोने की खान’ बन सकता है?

सम्मेलन में एक महत्वपूर्ण बात सामने आई कि प्लास्टिक उद्योग को अब केवल प्रदूषण करने वाले के रूप में नहीं, बल्कि समाधान प्रदाता के रूप में देखा जा रहा है। रसायन एवं पेट्रोकेमिकल विभाग के संयुक्त सचिव दीपक मिश्रा ने भी कहा कि भारत ने ईपीआर (विस्तारित उत्पादक जिम्मेदारी) जैसे सख्त नियमों को अवसर में बदलना शुरू कर दिया है, जिसका प्रमाण पीईटी बोतलों की 90% रीसाइक्लिंग है।

रसायन एवं पेट्रो रसायन विभाग की निदेशक वंदना ने इसे वैश्विक जिम्मेदारी बताया, जबकि एआईपीएमए के गवर्निंग काउंसिल के चेयरमैन अरविंद मेहता ने कहा कि भारत अब रीसाइक्लिंग में दक्षता प्राप्त कर वैश्विक मॉडल बनने की ओर अग्रसर है। जीसीपीआरएस 2025 के चेयरमैन हितेन भेडा ने कहा, “पुनर्चक्रण वह पुल है जो उद्योग और पर्यावरण के बीच संतुलन बना सकता है।”

एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत का प्लास्टिक रीसाइक्लिंग उद्योग अगले 8 वर्षों में 6.9 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है। ऐसे में, यह सम्मेलन केवल विचारों का मंच नहीं है, बल्कि आर्थिक, पर्यावरणीय और तकनीकी परिवर्तन की दिशा में भारत के एक गंभीर कदम का प्रतीक है।

केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने अपने दौरे में इस बात पर जोर दिया कि भारत का प्लास्टिक कचरा बाजार आने वाले वर्षों में 50 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है, जो पाकिस्तान के पूरे बजट से भी अधिक है। उन्होंने कहा, “हमारे कचरे में वह ताकत है जिसे हम ‘सोना’ बना सकते हैं।” उन्होंने महाराष्ट्र के ‘चंद्रपुर मॉडल’ का उदाहरण देते हुए देश भर में ऐसे नवाचारों को अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया।

यह चार दिवसीय आयोजन ‘सस्टेनेबिलिटी फोरम’ के इर्द-गिर्द घूमता है। यह दो दिवसीय तकनीकी मंच उन विषयों पर केंद्रित है जो प्लास्टिक रीसाइक्लिंग की मूलभूत संरचना से लेकर इसके वैश्विक विस्तार तक का रोडमैप तैयार करते हैं। एफएसएसएआई, बीआईएस और डीसीपीसी जैसे राष्ट्रीय संस्थानों की भागीदारी ने इन चर्चाओं को और भी अधिक व्यावहारिक और दिशा-निर्देशित बना दिया है।

तकनीकी सत्रों में ईपीआर प्रावधानों, खाद्य-ग्रेड पुनर्चक्रण, मानकीकरण और कचरा प्रबंधन जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर गहन चर्चा हुई। एफएसएसएआई से डॉ. रविंदर सिंह और बीआईएस से शिवम द्विवेदी ने अपने अनुभवों और नीतिगत सुझावों के माध्यम से श्रोताओं को यह समझाने का प्रयास किया कि ‘रीसाइक्लिंग’ अब कोई विकल्प नहीं, बल्कि एक अनिवार्यता बन चुकी है।

मदर डेयरी के प्रशांत भट और कोका-कोला इंडिया के राजेश अय्यापिल्ला जैसे उद्योग जगत के दिग्गजों ने मंच संभाला, तो सत्र और भी जीवंत हो गए। इन्होंने इकोसिस्टम नवाचार, प्लास्टिक की सुरक्षा और पैकेजिंग डिज़ाइन जैसे विषयों पर अपने विचार साझा किए।

इस सम्मेलन की प्रदर्शनी भी दर्शकों के लिए किसी प्रयोगशाला से कम नहीं थी। फार्मा, ऑटोमोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्रों में प्रयुक्त प्लास्टिक की पुनर्प्रक्रिया के व्यवहारिक समाधान मुख्य आकर्षण रहे। हजारों लोग उन तकनीकों का प्रत्यक्ष अनुभव कर रहे थे जो भारत के ‘कचरे से समृद्धि’ के सफर की आधारशिला बन सकती हैं। सिद्धार्थ आर. शाह, कैलाश बी. मुरारका, राजेश गौबा, हनुमंत सर्राफ, चंद्रकांत तुरखिया और हरेन सांघवी जैसे आयोजकों की भूमिका इस आयोजन को सफल बनाने में महत्वपूर्ण रही।

सम्मेलन में देश-विदेश की 175 से अधिक कंपनियों और संगठनों ने भाग लिया, जिसमें 230 से अधिक स्टॉल लगे हैं। 18 देशों से उद्योग विशेषज्ञ, नीति-निर्माता और रीसाइक्लिंग क्षेत्र के नेता शामिल हुए हैं। जीसीपीआरएस का यह आयोजन सिर्फ एक प्रदर्शनी नहीं, बल्कि एक दृष्टिकोण है – जो कहता है कि यदि हर कचरा ‘कैश’ में बदले, तो न केवल पर्यावरण बचेगा, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था भी समृद्ध होगी।

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