प्लास्टिक हब बनने की ओर भारत,1300 अरब डॉलर के बाजार में दावेदारी

ऋषि तिवारी
नई दिल्ली। भारत ने वैश्विक प्लास्टिक व्यापार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के उद्देश्य से एक महत्त्वाकांक्षी रणनीति की घोषणा की है। ऑल इंडिया प्लास्टिक्स मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (एआईपीएमए) द्वारा राजधानी दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन में केंद्र सरकार के दो वरिष्ठ अधिकारियों ने स्पष्ट संकेत दिया कि देश अब आयात-प्रतिस्थापन की नीति से आगे बढ़कर निर्यात-संचालित विकास की दिशा में बढ़ रहा है।
सम्मेलन को केंद्रीय सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय के अपर सचिव एवं विकास आयुक्त डॉ. रजनीश ने भी संबोधित किया। उन्होंने बताया कि एमएसएमई क्षेत्र भारत की जीडीपी में 30% योगदान देता है और लगभग 28 करोड़ लोगों को रोज़गार प्रदान करता है। उन्होंने कोविड के बाद देश की आर्थिक वापसी में इस क्षेत्र की भूमिका को ‘अद्वितीय’ बताया।
डॉ. रजनीश ने बताया कि 2023 में जहाँ केवल 1.6 करोड़ एमएसएमई पंजीकृत थीं, वहीं आज यह संख्या 6.5 करोड़ से अधिक हो चुकी है — यानी सिर्फ दो वर्षों में चार गुना वृद्धि। इसी तरह क्रेडिट गारंटी योजना में भी दो वर्षों में 6 लाख करोड़ रुपये के ऋण को सुरक्षित किया गया है, जबकि 2000–2022 के बीच 3 लाख करोड़ रुपये ही गारंटी के अंतर्गत थे।
उन्होंने एआईपीएमए के “चार गुना निर्यात लक्ष्य” को “व्यावहारिक और आकांक्षी” बताते हुए कहा कि “यह लक्ष्य न केवल पूरा होगा, बल्कि उम्मीद से अधिक परिणाम भी देगा, क्योंकि भारतीय उद्यमियों की क्षमताएँ आँकड़ों से कहीं आगे हैं।”
सम्मेलन के दौरान रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के संयुक्त सचिव (पेट्रोकेमिकल्स) दीपक मिश्रा ने कहा कि भारत का प्लास्टिक निर्यात वर्तमान में लगभग 4.5 अरब डॉलर है, जबकि आयात 5 अरब डॉलर — यानी लगभग 0.5 अरब डॉलर का व्यापार घाटा। अब सरकार की रणनीति यह घाटा मिटाने के साथ-साथ वैश्विक बाजार में भारत की उपस्थिति मजबूत करने की है।
उन्होंने कहा कि पारंपरिक एशियाई देशों के साथ हुए व्यापार समझौतों के स्थान पर अब यूएस, यूके, यूरोपीय संघ और ऑस्ट्रेलिया जैसे उपभोक्ता बाजारों के साथ नई एफटीए संधियाँ की जा रही हैं, जिससे 2–5% तक टैरिफ में छूट मिल सकती है और प्रतिस्पर्धा में भारत को बढ़त मिलेगी।
दीपक मिश्रा ने ईपीआर नीति, एकल-उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबंध और उत्पाद गुणवत्ता व अंतरराष्ट्रीय प्रमाणन को निर्यात की सफलता की अनिवार्य शर्तें बताया। उन्होंने प्लास्टिक उद्योग से अपील की कि वह स्व-नियमन अपनाते हुए प्रतिबंधित सामग्री के निर्माण और विपणन पर स्वयं अंकुश लगाए, अन्यथा कड़े सरकारी कदमों की चेतावनी दी गई है।
एआईपीएमए गवर्निंग काउंसिल के चेयरमैन अरविंद मेहता ने बताया कि प्लास्टिक फिनिश्ड उत्पादों का वैश्विक व्यापार करीब 1300 अरब डॉलर का है, जिसमें भारत की हिस्सेदारी मात्र 12.5 अरब डॉलर — यानी 1.2% है। उन्होंने अमेरिका का उदाहरण देते हुए कहा कि अकेले अमेरिका 72.35 अरब डॉलर का प्लास्टिक आयात करता है, जबकि भारत इसमें 1.2% से भी कम की आपूर्ति करता है।
श्री मेहता ने स्पष्ट किया कि यह मिशन केवल निर्यात बढ़ाने की योजना नहीं, बल्कि भारत को वैश्विक प्लास्टिक विनिर्माण हब बनाने की राष्ट्रीय रणनीति है। इसके अंतर्गत नए पॉलीमर प्लांट, अत्याधुनिक मशीनरी, और एमएसएमई यूनिट्स का आधुनिकीकरण प्रमुख लक्ष्य होंगे।
भारत में इस समय 50,000 से अधिक प्लास्टिक आधारित एमएसएमई इकाइयाँ कार्यरत हैं, जो 46 लाख से अधिक रोजगार प्रदान कर रही हैं। यदि चार गुना निर्यात लक्ष्य साकार होता है, तो यह आंकड़ा 60 लाख रोजगार तक पहुँच सकता है।
एआईपीएमए अध्यक्ष मनोज आर. शाह ने बताया कि संगठन वर्ष 2025 में तीन राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित कर रहा है — पहला सम्मेलन आज दिल्ली में संपन्न हुआ, दूसरा 22 अगस्त को अहमदाबाद, और तीसरा 17 सितंबर को मुंबई में प्रस्तावित है। इसके अतिरिक्त वर्षांत में ‘प्लास्टीवर्ल्ड’ नामक अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी का आयोजन किया जाएगा, जो विशेष रूप से प्लास्टिक फिनिश्ड उत्पादों पर केंद्रित होगी।
इस प्रदर्शनी में मेडिकल, ऑटोमोबाइल, पैकेजिंग, स्पोर्ट्स और घरेलू प्लास्टिक उत्पादों को वैश्विक खरीदारों के सामने पेश किया जाएगा।
सम्मेलन में विभिन्न मंत्रालयों के अधिकारी, नीति-निर्माता, प्लास्टिक उद्योग से जुड़ी प्रमुख हस्तियां और देशभर के एमएसएमई प्रतिनिधि उपस्थित रहे।
भारत का प्लास्टिक उद्योग अब केवल उत्पादन तक सीमित नहीं, बल्कि गुणवत्ता, नवाचार और वैश्विक प्रतिस्पर्धा की दृष्टि से एक नया युग गढ़ रहा है। सरकार का सहयोग, उद्योग की प्रतिबद्धता और उद्यमशीलता की भावना मिलकर भारत को “प्लास्टिक का विश्वगुरु” बनाने की दिशा में तेजी से अग्रसर कर रहे हैं।