सनातनियों के “जज़िया” से बाबा मुक्त !

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के. विक्रम राव


अनादिकालीन नगरी काशी पर आज तक प्रस्तुत असंख्य शोध रचनाओं में एक अति विशिष्ट कृति है साथी शतरुद्र प्रकाश की ताजा तरीन किताब : “श्री काशी विश्वनाथ मंदिर से धाम तक”, (संपादिका : अंजना प्रकाश, प्रकाशक गंगा वैली प्रकाशन, नवापुरा, सारनाथ, मूल्य 200 रूपये)। एक दावा होता था कभी कि “जिसने लाहौर नहीं देखा, उसने कुछ नहीं देखा।” उसी तर्ज पर कहा जा सकता है जिसने साथी शतरुद्र प्रकाश की कृति नहीं पढ़ी तो वह इस प्राचीनतम नगरी से अनजान, अनपढ़ ही रह जाएगा। कुल चौबीस शीर्षकों वाले 96-पृष्ठों की यह पुस्तक आवश्यक ऐतिहासिक जानकारी से लबरेज है। दस्तावेजी है, अतः संग्रहणीय भी। शतरुद्र डॉ राममनोहर लोहिया और लोकबंधु राज नारायण से बहुत प्रभावित रहे। ये दोनों काशी की आत्मा से आजीवन जुड़े रहे। माता पार्वती अरसे से अपने मायके हिमालय पर रह रहीं थीं। उनके आग्रह पर शंकर भोले उन्हें काशी ले आए थे।

जब वाराणसी के सांसद नरेंद्र मोदी ने जयपुर ग्राम को अपनाया था तो काशी का राजनैतिक महत्व ज्यादा बढ़ गया था। यूं रेतीले पूर्वोत्तर गुजरात के वडनगर ग्राम का यह चायवाला जब बड़ौदा संसदीय क्षेत्र तजकर पूर्वी यूपी में लोकसभा प्रत्याशी बना तो अचानक पूरा इलाका ही दमक उठा। शतरुद्र का इससे प्रभावित होना स्वाभाविक भी था। आखिर वे राजनेता रहे, छात्र जीवन से ही, जब काशी विश्वविद्यालय में थे। उन्होने समझ लिया मोदी के संदेश को कि : “मैं आया नहीं हूं। मुझे माँ (गंगा) ने बुलाया है” इससे कई बनारसी युवजन भी अनुप्राणित हुए थे। बात भी अध्यात्मिक थी, केवल-सियासी नहीं। यह पहलू स्पष्ट भी हुआ जब जापान के व्यस्ततम प्रधानमंत्री स्व. शिंजों आबे कई घंटों तक यहां ठहरे थे। मोदी के प्रशंसक होने के नाते शतरुद्र पर इन रूहानी और दुनियावी परिदृश्य का असर पड़ना सहज था। वे समझ गए कि काशी का कायाकल्प होगा। हो भी रहा है। आज वे सत्तासीन भाजपा के अग्रणी नायक है। काशी नगरी के दीप स्तंभों में खास।

सर्वाधिक काबिले गौर शतरुद्र की इस रचना का छठा लेख है, रुचिकर तथा महत्वपूर्ण भी। शीर्षक है “मंदिर पर गृहकर क्यों” ? (पृष्ठ 68)। इसी तरह छः अन्य जैन-हिंदू देवालयों से भी सरकारी वसूली का उल्लेख है। हर आस्थावान को शतरुद्र का शुक्रगुजार होना होगा कि उनके अथक संघर्ष और प्रयास के नतीजे में बाबा भोलेनाथ मंदिर पर थोपा यह कर अब रद्द हो गया। लेकिन इसके लिए इन विधायक को सायास प्रयास करना पड़ा। देखें संदर्भित पत्रावलि : पत्र संख्या – 377/को.जो./2022-23 सेवा में, श्री शतरुद्र प्रकाश, माननीय सदस्य, विधान परिषद, उ.प्र., विषय – भवन संख्या सी.के. 35/17 के संबंध में। शतरुद्र ने टीका भी की कि : “वाराणसी नगर निगम की बुद्धि की बलिहारी है जो उसने करोड़ों की आस्था के केंद्र श्री काशी विश्वनाथ मंदिर पर भी गृहकर यानी सामान्य कर लगा दिया है। नगर निगम के सैकड़ों रुपये के देनदार बाबा हो गए हैं। देखना है कि वसूली होती है या कुर्की की कार्यवाही ? वाराणसी के कई व्यवसायिक एवं गैर व्यवसायिक भवन कई एकड़ में स्थित हैं तथा उनसे लाखों रुपए का मुनाफा भी कमाया जा रहा है, किंतु उन पर गृहकर नहीं लगाया गया ! क्या विश्वनाथ मंदिर ही गृहकर के लिए बचा है ? क्या बाबा विश्वनाथ को काशी में रहने के लिए हाउस टैक्स देना होगा ? काशी विश्वनाथ मंदिर तथा उनका न्याय परिषद दिनांक 31 मार्च 2011 तक वाराणसी नगर निगम के जलकल विभाग का लगभग क्रमशः 36,522 रूपये तथा 45,874 रूपये के बकाए का देनदार है। यह बहुत ही आपत्तिजनक होने के साथ बुद्धि का दिवालियापन भी है। इससे यह भी जाहिर होता है कि वाराणसी नगर निगम मनमाने ढंग से नागरिकों के घरेलू भवनों पर अनाप-शनाप गृहकर तथा जलकर लगा रहा है। बाबा विश्वनाथ को नहीं बख्शा तो आम आदमी की बिसात ही क्या ?”

राजा हरीश्चंद्र से नरेंद्र मोदी तक काशी को सँवारने का सिलसिला रहा। इस शृंखला में अब कर मुक्ति कराने के कारण शतरुद्र की भी गणना आदरणीय होगी। खुद को विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित कर लिया। अतः दिल से बधाई काशीवासी, अंजनापति, सौ गणोंवाले (हालांकि रुद्र केवल ग्यारह होते हैं), सदा टोपीधारी भाई शतरूद्र प्रकाश को इस यादगार रचना हेतु। शतरूद्र मोबाइल : (7415225441) की मुहिम रंग लाई। काशी नगर आयुक्त ने बाबा भोलेनाथ के मंदिर को गृहकर से मुक्त कर दिया।

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