शहरी जीवनशैली और प्रदूषण से बढ़ रहा है टीबी का खतरा

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ऋषि तिवारी


ग्रेटर नोएडा। विश्व क्षय रोग (टीबी) दिवस के अवसर पर फोर्टिस हॉस्पिटल, ग्रेटर नोएडा ने दिल्ली-एनसीआर सहित शहरी क्षेत्रों में टीबी के बढ़ते मामलों को लेकर चिंता जताई है। फोर्टिस ग्रेटर नोएडा की एडिशनल डायरेक्टर – रेस्पिरेटरी मेडिसिन, डॉ. तनुश्री गहलोत ने हालिया आँकड़े साझा करते हुए समय पर पहचान और उपचार की आवश्यकता पर बल दिया।

पिछले छह महीनों में फोर्टिस ग्रेटर नोएडा में लगभग 200 टीबी मरीजों का निदान किया गया है, यानी औसतन हर महीने 30 से 40 नए मामले सामने आ रहे हैं। इनमें से 80% मरीजों में पल्मोनरी टीबी पाई गई, जिसमें प्लीूरल इफ्यूजन और लिम्फ नोड्स भी प्रभावित हुए। वहीं, 10-15% मरीजों में टीबी ने दो या अधिक अंगों पर असर डाला और 5% मामलों में मरीज एडवांस स्टेज या जानलेवा स्थिति में पहुंचे।

डॉ. गहलोत ने कहा, “टीबी अब केवल ग्रामीण या निम्न-आय वर्ग तक सीमित नहीं है। भीड़भाड़, खराब वेंटिलेशन, कुपोषण, तनाव और डायबिटीज जैसी जीवनशैली से जुड़ी बीमारियां उच्च आय वर्ग में भी टीबी के मामलों को बढ़ा रही हैं।”

टीबी से पुरुष अधिक प्रभावित हो रहे हैं, जिनमें 60-70% मामले पुरुषों में और 30-40% महिलाओं में सामने आए हैं। बीमारी की देर से पहचान एक बड़ी चुनौती बनी हुई है, जिसका मुख्य कारण शुरुआती लक्षणों की अनदेखी, एंटीबायोटिक्स का खुद से सेवन और समय पर डॉक्टर से परामर्श न लेना है।

डॉ. गहलोत ने एमडीआर-टीबी (मल्टी ड्रग रेसिस्टेंट टीबी) के बढ़ते खतरे पर भी चेतावनी दी। “अधूरा इलाज, पोषण की कमी, एचआईवी और डायबिटीज जैसी बीमारियां, धूम्रपान और शराब की लत एमडीआर-टीबी को बढ़ावा दे रही हैं। गलत दवाइयों का सेवन और पर्याप्त जांच सुविधाओं की कमी भी स्थिति को और गंभीर बना रही है।”

दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण भी फेफड़ों की सेहत को कमजोर कर रहा है और टीबी के जोखिम को बढ़ा रहा है। “पहले टीबी मरीजों को पहाड़ी क्षेत्रों के सैनिटोरियम में भेजा जाता था ताकि स्वच्छ हवा से इलाज में मदद मिले, यह आज भी उतना ही महत्वपूर्ण है,” डॉ. गहलोत ने जोड़ा।

फोर्टिस ग्रेटर नोएडा ने समय पर जाँच, पूरा इलाज और जीवनशैली में सुधार को टीबी नियंत्रण के तीन मुख्य स्तंभ के रूप में बताया।

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