देश में चले देशी भाषा

विश्वदेव राव
मेरे पिताजी (डॉ० के विक्रम राव) और उनके साथी छात्रकाल में नारा लगाते थे: “गाँधी-लोहिया की अभिलाषा, देश में चले देशी भाषा|”
आज यह नारा इसलीये और सारगर्भित और सटीक लगने लगा जब मैंने अंग्रेजी के अख़बार में तीन कालम की रपट पढ़ी “Shah launches language hub to decolonise’ admin”, हिंदी अख़बारों में 17वें पृष्ठ पर सौ शब्दों का विवरण| इसमें बताया गया की गृह मंत्री अमित भाई शाह द्वारा “भारतीय भाषाई अनुभाग” का उद्घाटन किया गया| इस अनुभाग का उद्देश भारत के सरकारी दफ्तरों में विदेशी भाषा का प्रभाव कम करना है| अभी तक अंग्रेजी ही प्रचलित थी | अमित शाह जी ने बताया कि वे अंग्रेजी के खिलाफ इस लड़ाई में जीत हासिल करेंगे| इस अनुभाग का एक और उद्देश है, भारत के विभिन्न अहिन्दी भाषी राज्यों से केंद्र सरकार की वार्ता को सरल करना है| मसलन, तमिलनाडु सरकार द्वारा तमिल में भेजे गए पत्राचार को केंद्र सरकार सरल हिंदी में पढ़ कर दिशा निर्देश दे सकती है, अंग्रेजी के उपयोग की ज़रूरत नहीं पड़ेगी| “हिंदी की सौतन अंग्रेजी है”, वाला विधवा विलाप अब नहीं चलेगा|
हिंदी अब ग्लोबल भाषा है| जगत-विस्तार वाली| प्रभु वर्ग वाली| यू० पी०, बिहार, मध्य प्रदेश के बाहर से आये प्रधान मंत्रियों की यह जुबान बन गयी है| मोरारजीभाई देसाई, पी०वी० नरसिम्हा राव और आज के नरेंद्र दामोदरदास मोदी| इसी क्रम में गृह मंत्री अमित भाई शाह, जिनकी मातृभाषा गुजराती है, पर इन-सबका शब्दोच्चारण, वाक्य विन्यास, वक्तृत्व शैली जाँचिये| उन्नीस नहीं पड़ेगी| यू०पी० के प्रधान मंत्रियों से कतई कम नहीं| इन लोगों ने पसीना बहाकर हिंदी सीखी है| घर की दालान या अहाते से नहीं उठाई है|
1957 में डा. लोहिया तथा उनके साथियों ने मांग की थी कि उत्तरप्रदेश सरकार का सारा कार्य संचालन (नामपट भी) हिंदी में हों उस आंदोलन में सैकड़ों समाजवादी कार्यकर्ता जेल भेज दिये गये थे। जब उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव जी की सरकार थी तब भी ये कोशिश की गई थी| फर्ज कीजिए उसी समय केंद्र व हिंदी प्रदेशों की सरकारें संपर्क भाषा का हल ढूंढ़ने का यत्न करतीं, तो आज तमिलनाडु में हुए भाषाई संघर्षों की ख़बरें पढने को नहीं मिलती, स्थिति इतनी नहीं बिगड़ती। लेकिन हुआ वही, जो होता आया है। बात वहीं रह गयी, एक प्रश्न चिन्ह बनकर।
काल तीन होते हैं (भूत, वर्तमान और भविष्यत)| अब बहुलता में कर दिए गए हैं, विखंडित कर|
आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस का ज़माना है, ChatGPT और अन्य कई सॉफ्टवेयर उपलब्ध है जो हिंदी में लिखना सीख और सिखा रहें हैं| इनका इस्तेमाल भी व्यापक स्तर पर हो रहा है| जैसे स्कूल से दिये गए कार्य को इन्ही सॉफ्टवेयर से पूरा कर लिया जाता है और अध्यापक भी उसी तरह उसे उत्तीर्ण अंक भी दे देते हैं, बिना जाने की उसमे क्या-क्या (व्याकरण,वर्तनी) गलतियाँ हैं| सरकारी दफ्तरों में भी कुछ यही हाल है | ये घातक है और हमे इससे सतर्क रहना होगा, वर्ना आने वाली पीढियां हमें क्षमा नहीं करेंगी|
जरूरत है अब कि अकादमिक क्षेत्र के साथ स्कूली स्तर पर सुधार के कदम उठाये जाएँ| जैसे स्नातक कक्षा तक हिंदी अनिवार्य हो| उसमें उत्तीर्ण हुए बिना डिग्री तथा प्रोन्नति न दी जाय| कान्वेंट स्कूलों के लिए कानून बनाना होगा कि वे हिंदी की चिन्दी नहीं बनायेंगे|
हिंदी का भी नवीनीकरण करना होगा| उपादेयता के लिहाज से|
एक बार की वार्ता में, जिसका मै दर्शक था उसमें पिताजी (डा० के विक्रम राव) से हिंदी भाषा तथा पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष रहे, डॉ. दीक्षित ने कहा था : “हिंदी की उपेक्षा हमारे समाज में हो रही है जिसका असर बच्चों पर पड़ना लाजिमी है| हिंदी हमारे बोलचाल की भाषा तो है लेकिन जो हिंदी हाईस्कूल व इंटरमीडियट के कोर्स में है वह पांच-छः सौ साल पुरानी भाषा है| इनमें सूर, तुलसी, कबीर समेत अन्य कवियों व लेखकों को पढ़ाया जाता है, जिसकी वजह से छात्रों को वह थोडा अटपटा लगता है| अवधी या बृज भाषा अब समाज में बोलचाल की भाषा नहीं रही| इसके लिए शिक्षकों को छात्रों के साथ जुटने की जरूरत होती है| कोर्स में जो व्याकरण है, उसके लिए बाकायदा लैब की जरूरत है|” अब शायद कुछ सुगमता आने के आसार लग रहें हैं | पर चुनौतियाँ अभी और भी हैं| “भारतीय भाषाई अनुभाग” को अग्रिम बधाइयाँ और शुभकामनायें |