November 18, 2025

नई दिल्ली में आयोजित चार दिवसीय जीसीपीआरएस का किया केंद्रीय मंत्री ने दौरा

GCRP 00

62 Views

ऋषि तिवारी


नई दिल्ली। केंद्रीय सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम तथा वस्त्र मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा है कि दुनिया में जहां लगभग 70 प्रतिशत कचरा सिंथेटिक (कृत्रिम) होता है, वहीं भारत में यह आंकड़ा अभी 50 से 60 प्रतिशत के बीच है। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि कॉटन जैसे जैविक कपड़ों को रीसायकल करना अपेक्षाकृत आसान है, लेकिन सिंथेटिक कचरे के पुनर्चक्रण पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है। मंत्री ने यह भी कहा कि आने वाले वर्षों में प्लास्टिक कचरे का बाजार 50 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है, जो पाकिस्तान जैसे देश के पूरे वार्षिक बजट से भी अधिक है। उन्होंने कहा, “हमारे कचरे में वह ताकत है जिसे हम ‘सोना’ बना सकते हैं।”
वे यह वक्तव्य नई दिल्ली में आयोजित चार दिवसीय ‘द्वितीय ग्लोबल कॉन्फ्रेंस ऑन प्लास्टिक रीसाइक्लिंग एंड सस्टेनेबिलिटी (जीसीपीआरएस)’ में भाग लेने के दौरान दे रहे थे।

इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री के साथ ऑल इंडिया प्लास्टिक मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (एआईपीएमए) के गवर्निंग काउंसिल चेयरमैन श्री अरविंद डी. मेहता एवं अन्य आयोजक मंडल के सदस्य भी उपस्थित थे। गिरिराज सिंह ने कहा कि भारत में प्लास्टिक कचरे के पुनर्चक्रण को लेकर जितनी गंभीरता होनी चाहिए, वह अब तक नहीं दिखाई दी है, लेकिन अब समय आ गया है कि हम इसे एक बड़े अवसर के रूप में देखें।

उन्होंने कहा कि आज वैश्विक स्तर पर निर्यात किए जाने वाले वस्त्रों की जांच इस आधार पर भी की जाती है कि उनमें कितने प्रतिशत सामग्री रीसायकल और सस्टेनेबल है। अपने दौरे के दौरान उन्होंने कई स्थानीय मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स का निरीक्षण किया और संतोष जताया कि जो मशीनें पहले विदेशों से मंगाई जाती थीं, वे अब महाराष्ट्र, गुजरात और अन्य राज्यों में बन रही हैं।

“हमें आत्मनिर्भर भारत की ओर बढ़ते हुए ऐसी तकनीकें देश में ही विकसित करनी होंगी, ताकि हम किसी अन्य देश पर निर्भर न रहें,” उन्होंने कहा। उन्होंने यह धारणा भी खारिज की कि केवल बोतलें ही प्लास्टिक कचरे का स्रोत हैं। मंत्री ने कहा कि बोतलों को तो अब लोग उठा रहे हैं, कुछ स्थानों पर उनका आयात भी होने लगा है। “असल चुनौती उन प्लास्टिक उत्पादों की है जो सूक्ष्म स्तर (माइक्रॉन) पर हैं और खुले में फैले हुए हैं।”

उन्होंने बताया कि देश के कई गांव और शहर प्लास्टिक कचरे से अटे पड़े हैं, और इस स्थिति से निपटने के लिए व्यापक नीति और नवाचार की आवश्यकता है। महाराष्ट्र के चंद्रपुर मॉडल का उदाहरण देते हुए उन्होंने एक यूनिट का उल्लेख किया, जो पूरी तरह कचरे से उपयोगी शीट्स और अन्य उत्पाद बना रही है। उन्होंने उद्यमियों से अपील की कि वे इस मॉडल को अपनाएं और टेक्नोलॉजी आधारित ऐसे समाधान विकसित करें, जो पर्यावरण के अनुकूल हों।

मंत्री ने कहा कि उनका मंत्रालय जूट आधारित पॉलिमर पर भी काम कर रहा है और गन्ना, बांस व लकड़ी की धूल से नए मिश्रण विकसित किए जा रहे हैं ताकि बायो-पॉलिमर की नई संभावनाएं तलाशी जा सकें। “जिस दिन सड़क पर पड़ा हर कचरा ‘सोने’ की कीमत पा जाएगा, उस दिन कोई उसे उठाने से नहीं चूकेगा। हमें ऐसे समाधान चाहिए जो मुनाफे के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी स्थायी हों।”

About Author

Contact to us