‘हक़’ फिल्म: सामाजिक बदलाव और कानूनी सुधार की दिशा में कदम
ऋषी तिवारी
फिल्म ‘हक़’ को रिलीज़ से पहले ही राजनीतिक, कानूनी और मीडिया के वरिष्ठ व्यक्तियों से शानदार प्रतिक्रिया मिल रही है। यह फिल्म संविधानिक अधिकारों, लैंगिक न्याय और व्यक्तिगत कानूनों पर चल रही राष्ट्रीय चर्चाओं में नई ऊर्जा का संचार कर रही है।
फिल्म की पृष्ठभूमि और कहानी
बता दे कि निर्देशक सौरभ वर्मा की यह फिल्म, रेशु नाथ की पटकथा पर आधारित, एक महिला की उस संघर्षपूर्ण कहानी को दर्शाती है, जो त्वरित ट्रिपल तलाक़ के बाद न्याय की खोज में है। यह कहानी ऐतिहासिक सुप्रीम कोर्ट के फैसले से प्रेरित है, जो महिलाओं के अधिकारों और संविधान की समानता पर केंद्रित है।
प्रशंसक और नेतागण की प्रतिक्रियाएँ
बता दे कि भाजपा के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने इसे “शक्तिशाली और भावनात्मक” फिल्म बताया, साथ ही शाह बानो केस से प्रेरित कहानी को महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई का प्रतीक माना। उन्होंने कानून में सुधार और समान नागरिक संहिता (UCC) की आवश्यकता पर बल दिया।
पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि यह फिल्म “समानता और सेक्युलरिज़्म पर आवश्यक संवाद” को प्रोत्साहित करती है। सिनेमाई प्रदर्शनी में पूर्व मुख्य न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) डॉ. डी.वाई. चंद्रचूड़, उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना और केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने भाग लिया।
जजों और अधिकारिक दृष्टिकोण
डॉ. चंद्रचूड़ ने कहा कि यह फिल्म उनके पिता, न्यायमूर्ति वाई.वी. चंद्रचूड़ द्वारा लिखित शाह बानो फैसले से व्यक्तिगत रूप से जुड़ी है। उन्होंने इसे “समान अधिकारों और संविधानिक मूल्यों की पुष्टि” बताया, जहां महिलाओं को हर स्तर पर बराबरी का अधिकार मिलना चाहिए—कानून से लेकर सामाजिक सोच तक।

