तन की नहीं मन की सुंदरता देखनी चाहिए

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ऋषि तिवारी


भगवान श्री कृष्ण ने मथुरा पहुंचने पर जब कुबड़ी कुब्जा को सुंदरी कहकर संबोधित किया तो वह डरकर एक किनारे बैठ गई। उसके बाद जब कृष्ण ने उसके पास जाकर उसको प्यार से पुचकारा तो उसने उनसे सुंदरी कहने का कारण पूछा जिस पर श्री कृष्ण ने कहा कि हमने तुम्हारे मन की सुंदरता को देखकर तुम्हें सुंदरी कहकर संबोधित किया है। तन की सुंदरता से उक्त विचार आज डेल्टा 1 के कम्युनिटी सेंटर में चल रही है श्रीमद भागवत कथा के पंडाल में आचार्य पवन नंदन जी ने व्यक्त किए

आज आचार्य जी ने नारद के सुझाव पर कंस द्वारा श्री कृष्ण को वृंदावन से मथुरा आने का आमंत्रण देने व श्री कृष्ण की वृन्दावन से विदाई का मार्मिक वर्णन किया। कंस के आमंत्रण पर जब श्री कृष्ण वृदांवन से चले तो उन्होंने अक्रूर जी से अपना रथ वृंदावन की सीमा तक खाली ले चलने और स्वयं पैदल चलने की बात कही। कथा का वर्णन करते हुए आचार्य जी ने कहा जब श्री कृष्ण चले तो गोपियां रोकर उन्हें रोकने लगी कृष्ण ने उनको समझा बुझाकर का शांत कराया और जब श्री कृष्ण ने राधा रानी से जाने के लिए विदा करने की बात कही तो इस बात पर पूरा वृंदावन रोने लगा जिसके चलते आज भी वृंदावन के पेड़ों के सिर झुके हुए प्रतीत होते हैं। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि उस समय वृंदावन निवासियों और पेड़ पौधों ने कितने अश्रु बहाए होंगे। कहा जाता है कि इसी कारण आज भी यमुना का पानी खारा है। मथुरा की सीमा पर पहुंचने के बाद श्री कृष्ण ने अक्रूर जी से जाकर कंस को अपने आने की सूचना देने को कहा जबकि स्वयं मथुरा का भ्रमण कर जानकारी लेने लगे।

इस दौरान श्री कृष्ण के साथ मथुरा आए उनके सखाओ ने कहा श्री कृष्ण तू मुझे यहां बेकार में अपने साथ ले आए। तुझमें और मेरे में काफी अंतर है। हम सबके चलते तेरा अपमान होगा। न तो मेरे वस्त्र तुम्हारे जैसे है ना अचार विचार। जिस पर श्री कृष्ण ने सामने से आ रहे एक धोबी को मामा कहकर पुकारा। वह नाराज हो गया और श्री कृष्ण के क्रोध का कोपभाजन बना। उसके बाद श्री कृष्ण अपने सखाओ के साथ धोबी से मिले कपड़े को लेकर एक दर्जी के यहां पहुंचें जिस पर उसने श्री कृष्ण का खूब स्वागत सत्कार किया और उनके सखाओ के कपड़ो की मरम्मत करके सही कर दिया।
जिस पर श्री कृष्ण के सखा खूब खुश हुए और श्री कृष्ण ने उसे आशीर्वाद दिया। उसके बाद उनकी भेट कब्जा से हुई जिसने श्रीकृष्ण और उनके सखाओ के माथे पर चंदन लगाया और उसके बाद श्री कृष्ण ने कुबड़ी का उद्धार किया और बूढ़ी कुबड़ी को उन्होंने 16 वर्ष की सुंदर कन्या बना दिया। उसके बाद श्रीकृष्ण कंस मामा के दरबार में की ओर चले गए।

आचार्य जी ने कथाकार, कलाकार और पत्रकार की महिमा और उनके कार्यों उपयोगिता का भी वर्णन किया और उन्हें सकारात्मक सोच की ओर पहल करने का उपदेश दिया। कथा के आरम्भ में मुख्य यजमान नरेश गुप्ता और दैनिक यजमान योगेश गर्ग, पवन बंसल, विनय गोयल, शिखिर गुप्ता, एड. अजय गुप्ता ने हरिद्वार से पधारे भागवत कथा व्यास का स्वागत कर आशीर्वाद प्राप्त किया। आज कथा में उपस्थित अतिथि जनों के द्वारा भारतीय धरोहर के नव वर्ष विशेषांक का लोकार्पण किया गया।

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