युद्ध के दिग्गज की नई पुस्तक ने भारतीय कैथोलिक संतों के जीवन के माध्यम से नेतृत्व को दी नई परिभाषा

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ऋषि तिवारी


नई दिल्ली। कारगिल युद्ध के दिग्गज, बेस्टसैलिंग लेखक और एशिया पेसिफिक के जाने-माने बिज़नेस लीडर डॉ जोसेफ के थॉमस एक नई पेशकश इंडियन कैथोलिक सेंट्स, ब्लेस्ड, वेनेरेबल्स एंड सर्वेन्ट्स ऑफ गॉड लेकर आए हैं। उनकी नई पुस्तक भारत में जन्मे 55 असाधारण लोगों की कहानियों को बयां करती है, जिन्होंने अपने दायरे से आगे बढ़कर किसी ओर के लिए अपने जीवन को समर्पित कर दिया। ये पुरानी तस्वीरों और प्रार्थनाओं में छिपे संत नहीं हैं- बल्कि असली जीवन के वे लोग हैं जो कुष्ठ रोगियों के बस्तियों में गए, जिन्होंने गांव के स्कूलों में जाकर बच्चों को पढ़ाया, बीमार लोगों को ठीक किया और ज़रूरतमंद लोगों की आवाज़ बन कर खड़े हुए। उनकी कहानियां प्रेरणादायी तो हैं ही, साथ ही आज के दौर में बेहद प्रासंगिक भी हैं जब बहुत से लोग प्रयोजन, प्रमाणिकता और नए प्रकार के नेतृत्व के तलाश में हैं।

दिल्ली के आर्कबिशप माननीय डॉ अनिल जोसेफ थॉमस कूटो ने फरीदाबाद के आर्कबिशप माननीय डॉ मार कुरियाकोस भरानीकुलंगरा की मौजूदगी में पुस्तक का विमोचन किया। इस अवसर पर जस्टिस इकबाल अहमद अंसारी, चीफ़ जस्टिस (रिटायर्ड) भी मौजूद थे। कार्यक्रम के दौरान पूर्व-अम्बेसडर, के पी फाबियान, प्रोफेसर, सिम्बायोसिस युनिविर्सटी ने एक पैनल चर्चा का आयोजन भी किया। डॉ ए.के. मर्चेन्ट महासचिव, द टेंपल ऑफ अंडरस्टैंडिंग इंडिया फाउन्डेशन इस अवसर पर मुख्य प्रवक्ता थे।

धार्मिक साहित्य की सीमाओं को पार कर, यह पुस्तक आज की खंडित दुनिया में नेतृत्व के अर्थ पर रोशनी डालती है। काव्यात्मक स्पष्टता और प्रभावशाली दृष्टिकोण के साथ डॉ थॉमस ने एक आकर्षक कथा लिखी है जो आध्यात्मिक एवं रणनीतिक रूप से समृद्ध है। कुष्ठ रोगियों के बीच रहने वाले, गुमनाम जीवन जीते हुए जनकल्याण हेतु संस्थाओं का गठन करने वाले और न्याय एवं प्रेम की खातिर शहादत को गले लगाने वाले संतों के जीवन के माध्यम से वे सहानुभूति एवं साहस के सिद्धान्तों का सामने लेकर आए हैं। ये वो गुण हैं जिन्हें अध्यापक, अधिकारी और परिवर्तनकर्ता भी महत्व देते हैं, लेकिन शायद ही कभी इस प्रमाणिकता को खोज पाते हैं।

‘आज की दुनिया में हर कोई प्रसिद्धि और सफलता हासिल करना चाहता है, ऐसे में ये कहानियां हमें याद दिलाती हैं कि महानता, भव्यता से आती है।’’ डॉ थॉमस कहते हैं, उनकी आवाज़ किसी उपदेशक की नहीं बल्कि एक सैनिक, साधक और रणनीतिज्ञ की है- जिसने युद्ध के मैदान में सेवा की, बहुराष्ट्रीय संगठनों का नेतृत्व किया और असंख्य युवाओं को मार्गदर्शन दिया। यह बहुआयामी लैंस पुस्तक को विशेष गहराई देता है। उनकी बहन डॉ सीनियर डेज़ी थॉमस एफसीसी, जो कैथोलिक नन हैं, वे भी भारत में संतों के गुमनाम जीवन पर रोशनी डालने के लिए समर्पित हैं- वे संत जो सबसे गरीब लोगों के बीच नंगे पैर चले, और समाज में अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया।

इस पुस्तक की कहानियां बीते युग की निशानियां नहीं हैं। वे पहचान, प्रमाणिकता, और नेतृत्व के लिए प्रतिक्रिया हैं, जो हमारे दौर की पहचान हैं। संत अल्फोंसा, संत कुरियाकोस, एलिआस छवारा और बीएल रानी मरिया जैसी शख्सियतें सिर्फ धार्मिक नहीं बल्कि नैतिक दिग्गज हैं जिन्होंने मानवता के प्रति गहन, अड़िग प्रेम के साथ उद्देश्य की स्पष्टता का नेतृत्व किया।

इस पुस्तक की सार्वभौमिकता इसे सबसे खास बनाती है। यह पाठक को किसी विशेष धर्म को मानने के लिए नहीं कहती बल्कि उन मूल्यों पर विचार करने का संदेश देती है जो धर्म से परें हैं। निस्वार्थ सेवा, नैतिक साहस और दूसरों के कल्याण के लिए अटूट समर्पण। इस पुस्तक में वर्णित संत सुधारक, निर्माता, शांतिदूत, शिक्षक, और देखभाल करने वाले थे- वे असली बदलावकर्ता थे, जो अपने पीछे ऐसे संस्थान, आंदोलन एवं विरासत छोड़ गए जो कई पीढ़ियों के जीवन को आकार दे रही हैं।

डॉ थॉमस का संदेश सरल और गहरा हैः ‘‘आपको उपदेश देने के लिए किसी मंच की आवश्यकता नहीं, आपको केवल सेवा करनी है।’’ आज के दौर में जहां नेतृत्व को आंकड़ों और मीडिया की मौजूदगी से मापा जाता है, वे हमें याद दिलाते हैं कि सच्चा प्रभाव शीर्षक से नहीं बल्कि दिल से आता है।
यह पुस्तक ऐसे समय में आई है जब समाज नैतिक आधार की तलाश में है। उपभोक्तावाद, डिजिटल विकर्षण के कोलाहल में इन संतों का जीवन प्रकाश स्तंभ के रूप में उभरा है- वे भ्रम में स्पष्टता, विविधता में एकता और ऐसी दुनिया में प्रयोजन दिखाते हैं जो अपना मार्ग खो चुकी है।

इंडियन कैथोलिक सेंट्स, ब्लेस्ड, वेनेरेबल्स एंड सर्वेन्ट्स ऑफ गॉड- सिर्फ एक पुस्तक नहीं है, यह स्मृति एवं गरिमा का पुनरूत्थान, तथा गहराई एवं प्यार के साथ जीवन जीने का निमंत्रण है। इस पुस्तक का मिशन पूरा होगा अगर यह हर पाठक को साहस और करूणा के साथ नेतृत्व का संकल्प देती है।

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