खांडसारी उद्योग पर केंद्र सरकार की नई नीति से छोटे किसानों, श्रमिकों और खांडसारी उद्योग की आजीविका पर संकट

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ऋषि तिवारी


उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में स्थित खांडसारी उद्योग जो एक लघु उद्योग की श्रेणी में आता है सदियों से स्थानीय अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। भारतीय चीनी और जैव-ऊर्जा निर्माता संघ की मांग ने खांडसारी इकाइयों से जुड़े व्यापारियों की नींद उड़ा दी है। संपूर्ण भारत में इस उद्योग द्वारा ख़रीदे जाने वाला गन्ना मिलों के मुक़ाबले 2 से 3 प्रतिशत हीं है। यह उद्योग बहुत हद तक मानव श्रम पर आधारित है और पारंपरिक लघु कुटीर उद्योग के रूप में कार्य करता है, जो खांडसारी राब और खांडसारी शक्कर और खांडसारी सीरा जैसे उत्पादों का उत्पादन करता है। खांडसारी उद्योग का संचालन उत्तर प्रदेश में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रदत्त खांडसारी लाइसेंस आदेश 1967 के तहत किया जाता है। यह उद्योग विशेष रूप से उन छोटे और सीमांत किसानों के लिए फायदेमंद साबित हुआ है, जो अपनी गन्ना उपज को बड़ी चीनी मिलों तक ले जाने में असमर्थ होते हैं। उत्तर प्रदेश सरकार इस उद्योग के लिए समय समय पर प्रोत्साहन नीति भी लाती रहती है जैसे 2019 में मुख्यमंत्री द्वारा लायी गई नीति के तहत कई नए लाइसेंस दिये गये और खांडसारी उद्योग को बढ़ावा दिया गया।

विदित हो कि सरकार द्वारा जारी शुगर कंट्रोल संबंधी पत्र 22 अगस्त 2024 के माध्यम से खांडसारी सुगर को भी सुगर की परिभाषा में सम्मिलित किए जाने के संबंध में राज्य सरकारो और सुगर मिल एसोसिएशन आदि से 23 सितंबर 2024 तक सुझाव माँगे गए हैं जब कि खांडसारी उद्योग से कोई सुझाव नहीं माँगे गए। यदि खांडसारी सुगर को सुगर की परिभाषा में सम्मिलित किया जाता है तो खांडसारी उद्योग के पूरी तरह से समाप्त होने की संभावना है।

सरकार शुगर कंट्रोल ऑर्डर 2024 लागू करने जा रही है इसी संबंध में उत्तर प्रदेश खांडसारी मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन की टीम केंद्रीय मंत्री पहलाद जोशी से मिली और एक पत्र के माध्यम से खांडसारी उद्योग को इससे बाहर रखने की मांग की गई।

उत्तर प्रदेश खांडसारी मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन के सुझाव और मांगे

खांडसारी उद्योग सीमांत क्षेत्रों में लघु उद्योग की श्रेणी में आता है और खांडसारी शुगर का उत्पादन (ओपेन पेन) परंपरागत द्वारा जबकि चीनी मिलों के द्वारा (वैक्यूम पेन) के साथ आटोमैटिक मशीनों से निर्मित किया जाता है जिसकी वजह से खांडसारी सुगर की रिकवरी चीनी मिलों की अपेक्षा 25-30% कम रहती है। गन्ना ख़रीद-खांडसारी उद्योगों को गन्ना की उपलब्धता हेतु कोई भी एरिया रिज़र्वेशन नहीं होता है जबकि चीनी मिलों को गन्ना किसानों का एरिया रिज़र्वेशन सुनिश्चित होता है।

चीनी मिलों के द्वारा अस्वीकृत गन्ना भी खांडसारी उद्योगों के द्वारा ही ख़रीदा जाता है। छोटे छोटे किसानों को अपने खेतों को ख़ाली कर अगली फ़सल की बुवाई के लिए गन्ना बेचने हेतु खांडसारी ही नक़द भुगतान उपलब्ध कराता है जिससे ज़रूरतमंद किसानों की त्वरित भुगतान की समस्या का निदान भी खांडसारी के माध्यम से ही होता है जबकि छोटे छोटे गन्ना किसानों के द्वारा चीनी मीलों तक अपना उत्पादित गन्ना चीनी मिलों मे पहुँचाना एवं उनके भुगतान की प्रक्रिया काफ़ी लंबी एवं असहज होती है।

गन्ना पिराई क्षमता- खांडसारी उद्योगों की गन्ना पिराई क्षमता मात्र 500- 1500 टन प्रतिदिन जबकि चीनी मिलों की गन्ना पिराई क्षमता 7500 – 15000 टन प्रतिदिन हैं जिसकी वजह से खांडसारी उद्योग के द्वारा मात्र कुल गन्ना उत्पादन का 2 प्रतिशत से 2.5 प्रतिशत ही पिराई की जाती हैं।

चीनी मिलों के द्वारा विविध उत्पादन एथनॉल, बायो गैस एवं पावर जनरेशन इत्यादि का उत्पादन करता है जबकि खांडसारी उद्योग सीमित संसाधनों के कारण अन्य उत्पादों का उत्पादन करने में सक्षम नहीं हैं।

उपरोक्त कारणों से खांडसारी उद्योग को यदि चीनी मिलों के साथ जोड़ दिया जाता है तो यह निश्चित ही खांडसारी उद्योग बंद हो जाएगा जिससे चीनी मिलों का गन्ना किसानों पर एकाधिकार हो जाएगा जिससे छोटे छोटे गन्ना किसानों का अहित होगा।

संक्षिप्त में उपरोक्त कारणों की वजहों से विगत 57 वर्षों से खांडसारी उद्योग उत्तर प्रदेश खांडसारी मैन्युफैक्चरिंग लाइसेंसिंग अधिनियम के अंतर्गत नियंत्रित है और चीनी मिलों का नियंत्रण भी विगत 58 वर्षों से भारत सरकार के द्वारा नियंत्रित है दोनों अलग अलग नियंत्रित है।

उत्तर प्रदेश एवं खांडसारी मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन का सुझाब है कि खांडसारी उद्योगों को शुगर कंट्रोल से अलग ही एवं यथावत रखा जाए अन्यथा खांडसारी उद्योग निश्चित ही बंद हो जाएगा और छोटे गन्ना किसानों की परेशानियाँ भी बढ़ जाएगी।

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