भवेश कुमार
पटना । बिहार में शराबबंदी से कई तरह के फायदे हुए हैं। एक तरफ जहां स्वास्थ्य संबंधी लाभ हुआ है तो दूसरी तरफ हिंसा में भी कमी आई है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जब प्रदेश में शराबबंदी की घोषणा की तो एक बहुत बड़ा तबका उनके समर्थन में उतर आया। माना जाता है कि सीएम नीतीश के इस कदम को महिलाओं का भरपूर साथ मिला।
इस कदम के लिए सीएम नीतीश को राजनीतिक विरोध का भी सामना करना पड़ा। हालांकि, नीतीश कुमार तमाम विरोध के बावजूद भी अपने फैसले से नहीं डिगे।बिहार में साल 2016 में शराब पर लगाए गए प्रतिबंध से रोज और साप्ताहिक रूप से शराब पीने के मामलों में 24 लाख की कमी दर्ज की गई। साथ ही अंतरंग साथी द्वारा हिंसा के मामलों में भी 21 लाख की कमी दर्ज की गई है।
‘द लांसेट रीजनल हेल्थ साउथईस्ट एशिया जर्नल’ में प्रकाशित एक नए अध्ययन में यह सामने आया है। इसमें कहा गया है कि यह भी अनुमान है कि इस प्रतिबंध ने राज्य में 18 लाख पुरुषों को अधिक वजन या मोटापे से ग्रस्त होने से रोका है।
रिसर्चर के दल में अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान के विशेषज्ञ भी शामिल थे। अनुसंधानकर्ताओं ने राष्ट्रीय और जिला स्तर पर स्वास्थ्य और घर-घर जाकर किए सर्वेक्षण के आंकड़ों का विश्लेषण किया। स्टडी के लेखकों ने कहा, ‘सख्त शराब विनियमन नीतियां अंतरंग साथी द्वारा की गई हिंसा के कई पीड़ितों और शराब के लती लोगों के स्वास्थ्य के लिहाज से लाभकारी हो सकती हैं।
अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार, अप्रैल 2016 में बिहार मद्यनिषेध एवं उत्पाद अधिनियम से पूरे राज्य में शराब के निर्माण, परिवहन, बिक्री और सेवन पर पूर्ण प्रतिबंध लग गया था। सख्ती से इसके क्रियान्वयन ने इस प्रतिबंध को स्वास्थ्य और घरेलू हिंसा के परिणामों पर सख्त शराब प्रतिबंध नीति के वास्तविक असर का अनुमान लगाने के लिए एक आकर्षक स्वाभाविक प्रयोग बना दिया है।
अध्ययन के लेखकों ने कहा, ‘प्रतिबंध से पहले बिहार के पुरुषों में शराब का सेवन 9.7 प्रतिशत से बढ़कर 15 प्रतिशत हो गया था, जबकि पड़ोसी राज्यों में यह 7.2 प्रतिशत से बढ़कर 10.3 प्रतिशत हो गया। उन्होंने आगे कहा, ‘प्रतिबंध के बाद यह प्रवृत्ति बदल गई और बिहार में कम से कम साप्ताहिक रूप से शराब के सेवन में 7.8 प्रतिशत तक की गिरावट आई, जबकि पड़ोसी राज्यों में यह बढ़कर 10.4 फीसदी हो गई।