जानें ,प्रथम पुज्य क्यों हुए ,,गणेश,,?

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राम नरेश ठाकुर


पटना। सनातन परंपरा के अनुसार, किसी भी मांगलिक कार्य या धार्मिक अनुष्ठान के प्रारंभ में सर्व प्रथम भगवन गणेश की पूजा होती है। शास्त्रों में भगवान गणेश को सिद्धि एवं बुद्धि का देवता माना गया है।और उनकी कृपा से हम सभी के जीवन में शुभ लाभ और समृद्धि की प्राप्ति होती है। भगवान गणेश, सर्वशक्तिमान देवता माने जाते हैं। शास्त्रों के मान्यतानुसार भगवान गणेश की आकृति करोड़ों सूर्य के सामान है। उनकी आराधना से घर में सुख समृद्धि आती है।

भगवान गणेश ब्रह्माण्ड के बिघ्न बिनाशक देवता के रूप में भी जाने जाते हैं। इसीलिए लोग हर मांगलिक कार्य को करने से पहले गणेश जी की पूजा करना शुभ मानते हैं। ताकि कार्य में किसी प्रकार का बिघ्न बाधा न हो। भगवान गणेश के जन्‍मदिन को गणेश चतुर्थी के रूप में भाद्रपद चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार एक वार देवताओं के बीच इस बात पर बहस छिड़ गई की देवताओं में श्रवश्रेष्ठ किसे माना जाय। अर्थात प्रथम पूजा का अधिकार किनको मिले। तब नारद की प्रेरणा से सभी देबता समाधान हेतु चंद्रमौलि भगवान शंकर के पास पहुंचे। महादेव जगत जननी जगदम्बा के साथ देवताओं के प्रश्न को सुनकर सभी देवताओं से कहा की आप सभी देवगन अपने अपने वाहन पर सवार होकर ब्रह्माण्ड की सात प्रदक्षिणा करें। जो भी प्रदक्षिणा कर प्रथम लौटेगा उन्हें प्रथम पूज्य माना जायेगा।

इतना सुनते ही सभी देवता गण अपने अपने वाहन पर सवार होकर ब्रह्माण्ड की प्रदक्षिणा को निकल पड़े किन्तु भगवान गणेश अपने वाहन मूसक को लेकर सोचने लगे की अगर मैं अन्य देवताओ की राह चलूँ तो काफी वक्त लगेगा। ऐसी स्थिति में उन्होंने बुद्धि का परिचय देते हुए ब्रह्मांड के कारक अपने माता पिता की सात प्रदक्षिणा लगाकर करबद्ध सामने खड़े हो गए। यह देख कर माँ पार्वती एवं महादेव बहुत प्रसन्न हुए। तद उपरांत जब सभी देवता प्रदक्षिणा कर वापस लोटे तो महादेव द्वारा गणेश को प्रथम पूज्य घोसित कर दिया गया।

देवताओं द्वारा जब इसका कारण पूछा गया तो भगवन शंकर ने बताया की माता पिता का स्थान ब्रह्मांड ही नहीं समस्त लोको में सर्वोच्च माना गया है गणपति ने अपने बुद्धि और विवेक का परिचय देते हुए माता पिता की परिक्रमा की अतः वे प्रथम पूज्य हुए। भगवान शंकर के इस निर्णय से सभी देवगन सहमत हुए तथा उसी दिन से भगवन गणेश प्रथम पूजा की शुरुआत हुई।

 

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