ऋषि तिवारी
नोएडा। सेक्टर 110 स्थित महर्षि यूनिवर्सिटी में मेकिंग ए रेडियो जिंगल पर एक कार्यशाला का आयोजन किया। इस कार्यशाला में महाराजा अग्रसेन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज के विभागाध्यक्ष डॉ. उमेश चंद्र पाठक भी मौजूद रहे। महर्षि यूनिवर्सिटी ऑफ़ इंफार्मेशन टेक्नॉलोजी, नोएडा और आई क्यू ए सी (IQAC) के समन्वय से मीडिया विभाग द्वारा ‘मेकिंग ए रेडियो जिंगल’ पर एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। आयोजित कार्यशाला में पत्रकारिता एवं जनसंचार के स्नातक और स्नातकोत्तर के छात्र-छात्राओं ने रेडियो जिंगल बनाने के गुर सीखें।
कार्यशाला के मुख्य अतिथि डॉ. उमेश चंद्र पाठक, विभागाध्यक्ष, पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग, महाराजा अग्रसेन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज, दिल्ली (संबद्ध- गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय, दिल्ली) थे। डॉ. पाठक ने छात्रों को कार्यशाला के दौरान जिंगल मेकिंग से जुड़े अपने अनुभव और विचार साझा किए। रेडियो जिंगल्स और टैगलाइन का महत्व समझाते हुए दो दशकों के कुछ प्रासंगिक विज्ञापन दिखाए। उन्होंने कहा कि जिंगल एक उत्पाद पर एक गीतात्मक संगीतमय विज्ञापन-स्पॉट था और अक्सर एक व्यावसायिक प्रयास था और उन्होंने कहा कि इसे रचनात्मकता से भरा होना चाहिए और आकर्षक होना चाहिए। अपनी बात को अमिताभ बच्चन और रेडियो प्रस्तोता अमीन सयानी सहित कई सेल्युलाइड सितारों की मिमिक्री के साथ जोड़ते हुए डॉ. पाठक ने कहा कि जिंगल बनाना कड़ी मेहनत रचनात्मकता की एक प्रक्रिया है और इसे एक समय सीमा के भीतर किया जाता है।
कार्यशाला में छात्रों के साथ अपना व्याख्यान जारी रखते हुए डॉ. पाठक ने कहा कि जिंगल्स विपणन अभियानों की धड़कन हैं, जो आकर्षक धुनों और यादगार गीतों के साथ दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। एक प्रभावी जिंगल तैयार करने के लिए रचनात्मकता, रणनीतिक सोच और संगीत कौशल के मिश्रण की आवश्यकता होती है। जिंगल निर्माण की यात्रा शुरू करते समय विचार करने योग्य कुछ प्रमुख बिंदु यहां दिए गए हैं।
महर्षि यूनिवर्सिटी ऑफ़ इंफार्मेशन टेक्नालॉजी की डीन अकादमिक डॉ. ट्रैप्टी अग्रवाल और डॉ. उमेश चंद्र पाठक के बीच बात-चीत के दौरान डॉ. पाठक ने कि वेदों और अन्य पवित्र ग्रंथों की सामग्री भगवत गीता का आधार बनी, जिसमें मानव के संपूर्ण जीवन के प्रबंधन का इतना शक्तिशाली संदेश था जो आज तक प्रासंगिक है।
डॉ. पाठक ने कहा कि सिर्फ गीत लिखने से पहले ब्रांड या उत्पाद को समझना बहुत जरूरी है। यह समझना आवश्यक था कि उत्पाद को क्या संदेश देना चाहिए और जिंगल को किस प्रकार का भावनात्मक संदेश उत्पन्न करना चाहिए। यदि यह युवा पीढ़ी के लिए होता, तो ‘हर दोस्त जरूरी होता है’ उपयुक्त हो सकता था, जबकि घर का काम करने वाली गृहिणी के लिए जिंगल ‘निरमा… निरमा वॉशिंग पाउडर निरमा…’ एकदम सही हो सकता था। उन्होंने कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि जिंगल बनाया जाए और लक्षित दर्शकों तक पहुंचाया जाए।
कार्यशाला का समापन छात्रों के साथ एक इंटरैक्टिव प्रश्नोत्तरी सत्र के साथ हुआ। महर्षि यूनिवर्सिटी के डॉ. मुदिता अग्रवाल (डीन) और श्री गौरव ठाकुर, फैकल्टी (एसओसी) और मीडिया विभाग के डॉ. शंभू शरण गुप्ता (एचओडी), एसोसिएट प्रोफेसर, नितिन सक्सेना, प्रोफेसर, डॉ. मिथिलेश कुमार, डॉ. सुरमीत सिंह, असिटेंट प्रोफ़ेसर, श्री शिवम यादव, श्री सुनील कुमार यादव, अरविन्द सिंह और श्री मोहन सिंह रावत उपस्थित थे।